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पंचमहाभूतों को शुद्ध, सजीव करने के लिए निम्न दो कार्य अनिवार्य है

1. अग्निहोत्र -ठीक सूर्योदय, सूर्यास्त के समय किया जाने वाला यज्ञ 

2. गौपालन - भारतीय नस्ल के गाय का पालन

अग्निहोत्र की प्रक्रिया से प्रकृति की छह मूल ऊर्जाएँ—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, कुश्माण्डा, स्कंदमाता, कालरात्रि और महागौरी—सक्रिय होती हैं, और इन्हें नियंत्रित करने वाली तीन ऊर्जाएँ—चंद्रघंटा, कात्यायनी और सिद्धिदात्री—भी प्रकट होती हैं। इन नौ ऊर्जाओं के संयोग से ब्रह्म ऊर्जा, विष्णु ऊर्जा और शिव ऊर्जा की निर्मिति होती है, जो पंचमहाभूतों की पाँचों तन्मात्राओं—रूप, रंग, गंध, स्वर और स्पर्श—को भौतिक रूप में प्रकट करती हैं। जब इन सूक्ष्म ऊर्जाओं के साथ गाय के पंचगव्य (गोबर, गौमूत्र, दही, छाछ और घी) का संयोजन होता है, तब मन, बुद्धि और अहंकार का निर्माण शुरू होता है; सूक्ष्म सृष्टि के जीवाणु उत्पन्न होने लगते हैं और दिखने वाली भौतिक दुनिया अधिक स्वस्थ, पोषित और समृद्ध होती जाती है। इस प्रकार सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र स्वयंपोषी, स्वयंविकासी और स्वयंपूर्ण रूप में स्थापित हो जाता है।

इस प्रकृति में दो तरह की सजीव दुनिया अपना जीवन पूरा कर रही है। 
पहली दुनिया है- सुक्ष्म दुनिया 
दुसरी दुनिया है- स्थूल दुनिया

सुक्ष्म दुनिया में सप्त ऊर्जा, सुक्ष्म अणु और जीवाणु है। सुक्ष्म अणुओं से भी छोटी छोटी इकाइयां हैं, स्थुल दुनिया में कीट, पतंगों से लेकर बड़े तरह के जीव पशु, पक्षी इतना ही नहीं धरती चांद तारे जैसे ग्रह, उपग्रह भी है।

स्थुल दुनिया जो हमें दिखाई देती है वो मात्र 4 प्रतिशत है। इस 4 प्रतिशत दुनिया को पोषण देने का काम गौमाता करती है। गाय के पंचगव्य स्थुल दुनिया को पोषण देती है। गौमाता से निकला हुआ गौमुत्र जिसमें सभी तरह के अणु होते है। गौमाता से निकला हुआ गोबर मे सभी तरह के जीवाणु होते हैं। अणुओं और जीवाणु को संसार को शुरू करते ही अणुओं और जीवाणुओ की दुनिया यानी अण्डज (वायरस), द्विदज (फंगश) स्वेदज, जरायुज ऐसे जीवों की उत्पत्ति होती है। जरायुज यानी जो गर्भ में रखकर जो अपने बच्चों को पैदा करती है, और प्रकृति का निर्माण करती है। इसी में बहुत से पशु, पक्षी, मनुष्य आते है, इस स्थूल प्रकृति के पोषण का आधार गौमाता है। गौमाता के पंचगव्य से प्रकृति का पोषण तो होता ही है। इसके अलावा गौमाता सूक्ष्म दुनिया के जीवों (ऊर्जा व अणु आदि जिन्हे हम दुर्गा, विष्णु, ब्रम्हा, शंकर, गणेश, इंद्र, सूर्य आदि 33 कोटि देवता कहते है) उनके पोषण यानी भोजन की व्यवस्था की सामग्री (कंडे, घी चावल) भी उपलब्ध कराती है। अब इस प्रकृति की सूक्ष्म दुनिया का ऊर्जा केंद्र शुरू होता है वह है अग्निहोत्र।

गाय समस्त विश्व को बनाने वाली सात ऊर्जाओं का इस धरा पर बीज स्वरूप में अवतार है, अपने आप में ऊर्जा का बीज हैं। सात ऊर्जा यानी शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद् रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि इन सात ऊर्जाओं का सूक्ष्म बीज का नाम महागौरी (गाय) है।

जैसे पीपल का पूरा पेड़ एक बीज में समाहित होता है, ऐसे ही इतने बड़े ब्रह्माण्ड का बीज गाय है। गाय की जो ऊर्जा की परिपूर्णता घी है। गाय का गोबर पूरा पूरा कार्बन है पर इसके जलने से कार्बन डाई आक्साइड की अनुभूति नही होती, कार्बन डाई आक्साइड के निकलने से आंख में आंसू आते है, श्वांस में दिक्कत आती है, मुझे 12 वर्ष हो गए अग्निहोत्र करते, आज तक ये अनुभूति नही हुई, इस आधार पर मैं कहता हूं कि गाय के गोबर के कंडो के कार्बन के जलने में कार्बन डाईआक्साइड बनाने की प्रकृति का नियम लागू नही होता है,

चावल की पूर्ति मनुष्य (किसान) के जीवन की पूर्णता है। जब अग्निहोत्र के पात्र में गौमाता के सूखे गोबर के कंडे जलकर 400 डिग्री टेम्पेरचर तापमान बनाता है और उसमें जब घी (गाय के जीवन की पूर्णता) और चावल (मानव के जीवन की पूर्णता) डाला जाता है तो वो इस कार्य (अग्निहोत्र) से बाहर जो सूक्ष्म होकर हवा में आता है, यही पंच महाभूतों और सूक्ष्माणुओं का पोषण (भोजन) है।

मनुष्यों का कर्म कृषि है और उसके कार्य की परिणीति ही है यह चावल, जब घी और चावल अग्निहोत्र की आहुति में जाते है, तो वह सभी ऊर्जा उत्पन्न होती है जो सूक्ष्मा दुनिया को भोजन के लिए पर्याप्त होती है।

अग्नि प्रकृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। सूक्ष्म दुनिया को भोजन देने वाली इकाई है, इसलिए अग्निहोत्र को भगवान कृष्ण ने कामधेनु कहा, मतलब सब कुछ देने वाली, 96% सूक्ष्म दुनिया को भोजन देने वाली इकाई कहा, फिर दूसरा कामधेनु भगवान कृष्ण ने गाय को कहा है, ताराचंद बेलजी तकनीकी कृषि व जीवन शैली के अपने प्रयोग में हमने कई बार दिखाया भी है कि पंचगव्य इस प्रकृति के सभी जीवों का पोषण है और ना केवल पोषण है, पंचगव्य से सभी तरह के जीवाणुओं की भी उत्पत्ति होती है। और जीवाणुओं की उत्पत्ति होते ही प्रकृति का ईकोसिस्टम पारिस्थितिक तंत्र शुरू हो जाता है। गाय के गोबर में सभी तरह के जीवाणु है तो इस स्थूल प्रकृति और जीवाणुओं से शुरू होती है।

इसलिए गाय ऊर्जा का दूसरा महत्वपूर्ण केंद्र है। सूक्ष्म दुनिया को ऊर्जा और पोषण देने का काम अग्निहोत्र करती है और स्थूल दुनिया को ऊर्जा और पोषण देने का काम गाय करती है।

प्रकृति 5 महाभूतों (महाजीवों) से बनी है

पंचमहाभूत अर्थात पांच महाजीव (भूमि गगन वायु अग्नि नीर) जिन्होंने इस धरती में जीवन की विशाल 
रचना खड़ी की जिसे हम अपरा ऊर्जा- प्रकृति कहते हैं और इसका संचालन परा ऊर्जा करती है।

पंचमहाभूतों की माप, पूर्णता व संतुलन

पूरी प्रकृति को पंचतत्वों (भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर) ने बनाया है। खेती की मिट्टी को भी पंचमहाभूतों ने बनाया है, बार बार जुताई (मिट्टी कटाव, साल में 2-3 फसल आदि करणों से मिट्टी अपूर्ण हो गई हो इसमें जिंक, मैग्नीज, कॉपर, आयरन जैसे तत्व खत्म ही हो गए है।
आधुनिक विज्ञान प्रकृति का निर्माण केवल प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहायड्रेट, कार्बन और खनिज तत्व के माप तक ही सीमित है जबकि प्रकृति के निर्माण में पहला तत्व गगन (आकाश) महाभूत का योगदान रहा है उसके बाद वायु, अग्नि, नीर और भूमि तत्व के साथ म बुद्धि और अहम-कार का योगदान रहा है। प्रकृति निर्माण करने वाले इन तत्वों की अनदेखी कर के कोई भी खेती सफल नहीं हो सकती हैं, कोई भी इंसान सुखी नहीं रह सकता है। 
किये विश्वमण से कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं मिल सकता है। ताराचंद बेलजी तकनीक में इन तत्वों को देखा गया, पहचाना गया और मापा गया है। खेती में हर फसलों पर इनके संतुलन को परखा भी गया है और 1600 वर्ष पूर्व लिखित वृक्षायुर्वेद से इनका निदान भी किया गया है।


पंचमहाभूत कृषि की चरणबद्ध प्रक्रिया

ताराचंद बेलजी कृषि तकनीक प्रकृति के ऊर्जा विज्ञान एवं पंचमहाभूतों के व्यवस्था विज्ञान पर आधारित है। यह तकनीक पंचमहाभूत ( भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर) को शुद्ध, सजीव, संस्कारित करते हु ए फसलों की स्वयं-पोषी, स्वयं-विकासी, स्वयं-पूर्ण व्यवस्था को स्थापित करती है। उपलब्ध खाद्यान पंचतत्व की ऊर्जा से पूर्ण पौष्टिक और षडरस (खट्टा, मीठा, नमक, कटु, तिक्त, कसाय) युक्त स्वादिष्ट होता है। टीसीबीटी कृषि विज्ञान की चरणबद्ध प्रक्रिया का क्रम निम्न है-

TCBT कृषि विज्ञान- पंचमहाभूत संतुलन व्यवस्थ

भूमि तत्व️

भूमि तत्व प्रकृति का आधार तत्व है माता तत्व है, यही तत्व से शेष 4 महाभूत का आंकलन किया जा सकता है, इसकी तण ृ मात्रा (सूक्ष्म उर्जा इकाई) को रूप कहा गया है। भूमि से निकालने पर इसका स्वरूप ठोस मिलता है, गगन में इसका स्वरूप रंग कहलाता है, वायु में इसका स्वरूप गंध कहलाता है, अग्नि में इसका स्वरूप “स्वर” कहलाता है और नीर में इसका स्वरूप “स्पर्श” कहलाता है।

फसल में भूमि तत्व की कमी के लक्षण

1) पत्तियों का टेड़ा मेंड़ा बनना 

2) पत्तियों का आधा भाग सुखना 

3) तने की गठाने पास पास होना 

4) फलों का आधा गलना 

5) फलों तनों के अंदर इल्लियों का आना 

6) पत्तों फूलों में रस चूसक कीटो का ज्यादा आना

फसल में भूमि तत्व के कमी का समाधान

स्थाई उपाय 

1) प्राकृतिक खनिज (आयरन आक्साइड, कैल्शियम मैग्निशयम, रॉक फास्फेट) और गोवर्धन खनिज खाद डालें। 

2) TCBT खनिज भस्म किट से भस्म रसायन बनाकर जमीन में डालें। 

3) हाई C:N रेशियो और फसल घुट्टी बनाकर सिंचाई के पानी में मिलाकर भूमि में चलाएं। 

4) जीवाणु जल / सजीव जल / पंचगव्य घोल सिंचाई के जल में मिलाकर चलाएं।

तत्कालिक उपाय

1) फसल की शुरूआती अवस्था में फसल में 20% ऊर्जा जल और 20% अणु जल मिलाकर स्प्रे करें।
2) फूल बनने के पहले राह का नत्रजन, फास्फो पोटाश तरल, जीवन द्रव्य का स्प्रे करें।
3) फल बनने की अवस्था में कैल्शीफोर और खनिज तरल का स्प्रे करें।
4) नीले-पीले-हरे कॉच के बॉटल में गौमूत्र भरकर हप्ता- 15- महिना भर सूर्य प्रकाश दिखाकर 10 से 15 ml प्रति पानी में मिलाकर फसलों पर स्प्रे करें।

भूमि तत्व प्राप्ति के उपाय

गगन तत्व️ प्राप्ति

गगन तत्व एक रिक्त, शून्य और व्यापक तत्व है, जिसका निर्माण केवल तीन ऊर्जाओं—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा—से हुआ माना जाता है। किसी भी पदार्थ का ऊर्जा में रूपांतरण इसी शून्य अवस्था, अर्थात गगन तत्व में पहुँचकर संभव होता है। मनुष्य सहित सभी जीवों के भीतर उपस्थित यह रिक्तता ही उन्हें ऊर्जा प्रदान करती है। प्रकृति की रचना में सबसे पहले आकाश तत्व (गगन) का उदय हुआ, और इसी आधार से अन्य सभी महाभूतों का निर्माण क्रमशः प्रकट हुआ। क्योंकि सभी तत्व गगन के भीतर समाहित होते हैं, इसलिए भारतीय दर्शन में इसे पिता तत्व कहा गया है। हर जड़-चेतन अस्तित्व में ऊर्जा के प्रवाह और संरक्षण के लिए गगन तत्व का होना अनिवार्य है।

फसल में गगन तत्व की कमी के लक्षण

  1. बीजों की अंकुरण क्षमता कम हो जाती है और स्वस्थ बीज बन ही नहीं पाते।

  2. फलों का वजन घट जाता है, वे पूर्ण विकास नहीं कर पाते।

  3. पौधों में फूल अधिक झड़ते हैं, जिससे उत्पादन कम होता है।

  4. पौधे अपनी पूरी ऊँचाई नहीं ले पाते, उनका विकास रुक जाता है।

  5. पौधों के पत्ते छोटे, कमजोर और कम फैलाव वाले बनते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण भी घट जाता है।

फसल में गगन तत्व के कमी का समाधान

स्थाई उपाय 

  • सूर्य-तप्त गौमूत्र (10 लीटर) को सिंचाई जल में मिलाकर खेत में दें, इससे मिट्टी की रिक्तता (स्पेस ऊर्जा) सक्रिय होती है और गगन तत्व पुनः संतुलित होता है।

  • बिना जुताई मिट्टी का सौर्यीकरण करें—खेत की मिट्टी को खुला छोड़कर धूप लगने दें, इससे मिट्टी में मौजूद नमी, रोगजनक और संकुचन दूर होता है तथा गगन तत्व का विस्तार बढ़ता है।

  • फूल आने से पहले पौधों को तान दें, अर्थात कुछ समय के लिए पानी-खुराक रोकें—इससे पौधे प्राकृतिक रूप से अपनी आंतरिक ऊर्जा सक्रिय करते हैं और गगन तत्व की ग्रहण क्षमता बढ़ जाती है।

  • तत्कालिक उपाय

  • 10 ml सूर्य-तप्त (पीली बोतल में रखा) गौमूत्र प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर छिड़काव करें—इससे पौधों में गगन तत्व की सक्रियता बढ़ती है और बीज निर्माण प्रक्रिया मजबूत होती है।

  • गगन महाभूत से प्रार्थना करें कि वह फसलों में बीज तत्व के निर्माण में सहायता करे।
    राम-राम मंत्र का उच्चारण करें और ढोलक की हल्की थाप देकर खेत में सकारात्मक कंपन (वाइब्रेशन) फैलाएँ—इससे पौधों की ऊर्जा ग्रहण क्षमता और गगन तत्व का प्रभाव बढ़ता है।

  • वायु तत्व

    गगन तत्व रिक्त और शून्य स्वरूप वाला तत्व है, जिसका निर्माण केवल तीन ऊर्जाओं—शलपुत्री, ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा—से हुआ है। यही शून्य वह आधार है जहाँ कोई भी पदार्थ पहुंचकर ऊर्जा में परिवर्तित होता है, और मनुष्य सहित हर जीव के भीतर मौजूद यही रिक्तता उसे जीवन-ऊर्जा प्रदान करती है। प्रकृति की रचना में सबसे पहले आकाश तत्व का उदय हुआ और उसी ने आगे चलकर सभी अन्य तत्वों का निर्माण किया; इसलिए भारतीय दर्शन में इसे ‘पिता तत्व’ कहा गया है। प्रत्येक जड़ और चेतन पदार्थ में ऊर्जा के प्रवाह के लिए गगन तत्व का होना अनिवार्य है, क्योंकि यही तत्व पूरे अस्तित्व को ऊर्जा, स्पंदन और विस्तार प्रदान करता है।

    फसल में वायु तत्व की कमी के लक्षण

    1) पौधे में वायु तत्व कम होने से पौधे का विकास रुक जाता है। 
    2) चमड़ी शुष्क पड़ती है। 
    3) पत्ते और फलों में स्वाद नहीं रहता है । 
    4) पत्तों में नसे उभर आती है।

    फसल में गगन तत्व के कमी का समाधान

    स्थाई उपाय 

    1) मिट्टी में गगन तत्व बढ़ाने के लिए तिल की हरी खाद मिलाकर, हाई C:N रेशियो वाला घोल, सायनोबैक्टिरिया, अग्निहोत्र भस्म और जड़ रसायन जमीन पर डालें, जिससे मिट्टी में सूक्ष्म जीव सक्रिय होकर 
    2) खनिजों का पुनर्निर्माण करते हैं। इसके साथ खेत में बिना जुताई दरारें बनने दें, ताकि हवा मिट्टी के भीतर तक प्रवेश कर सके और गगन तत्व स्वभाविक रूप से बढ़े, जिससे मिट्टी अधिक उपजाऊ, जीवंत और सांस लेने योग्य बनती है।

    तत्कालिक उपाय

    उपज और जड़-शक्ति बढ़ाने के लिए ऊर्जा जल में अग्निहोत्र भस्म की मात्रा बढ़ाकर (100 लीटर पानी में 500 ग्राम भस्म) उसे सीधे जड़ों में दें, जिससे मिट्टी की नकारात्मक फंफूद और ऊर्जा अवरोध तुरंत कम होते हैं। इसके साथ 200 लीटर जीवाणु जल में 20 लीटर जड़-रसायन मिलाकर फसलों की जड़ों में डालें, जिससे लाभकारी सूक्ष्मजीव तेजी से सक्रिय होकर पौधों को पोषण उपलब्ध कराते हैं। अंत में हाई C:N रेशियो का घोल 4% की दर से जमीन पर स्प्रे करें ताकि मिट्टी में कार्बन-नाइट्रोजन संतुलन सुधरकर पौधों की वृद्धि स्वाभाविक रूप से मजबूत हो सके।

    अग्निन तत्व

    अग्निन 

    तत्व वह मूल शक्ति है जो ऊर्जा को पदार्थ में और पदार्थ को ऊर्जा में परिवर्तित करती है, इसलिए इसका प्रकृति में संतुलित रहना अत्यंत आवश्यक है—जैसे ही यह असंतुलित होता है, जीवन-रचना का स्वरूप बदलने लगता है। यह तत्व अन्य सभी महाभूतों तथा समस्त जड़-चेतन को शुद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ताराचंद बेलजी कृषि तकनीक में अग्निहोत्र अनिवार्य यज्ञ भाग माना गया है, क्योंकि अग्निहोत्र से उत्पन्न सूक्ष्म ऊर्जाएँ पंचमहाभूतों को शुद्ध, सशक्त और पुनर्जीवित बनाती हैं, जिससे कृषि-तंत्र स्वाभाविक रूप से स्वस्थ, उपजाऊ और संतुलित बन जाता है।

    फसल में अग्नि तत्व की कमी के लक्षण

    1) पत्तों में हल्का पीलापन आना, पत्तों का कड़क न रहना। 
    2) सूर्य प्रकाश का अवशोषण कम होना। 
    3) प्रकाश संश्षण की प्र ले क्रिया का पूर्ण ना होना। 
    4) फू लो पत्तों में चमक न रहना। 
    5) जमीन में जिंक, सल्फर, कॉपर, मैग्नीज की कमी होना। 
    6) पौधों में अग्नि तत्व की कमी होने पर पौधा कफज हो जाता है और फिर पौधों पर फं गस, वायरस और रसचूसक कीटों के हमले होते हैं।

    फसल में अग्निन तत्व के कमी का समाधान

    स्थाई उपाय 

  • राह खनिज भस्म को अंतिम जुताई या बुआई से पहले खेत में समान रूप से डालें।

  • प्राकृतिक खनिज जैसे आयरन ऑक्साइड, कैल्शियम-मैग्नीशियम खनिज और रॉक फॉस्फेट को जुताई या बुवाई से पूर्व मिट्टी में मिलाएं, ताकि ये पौधों के लिए उपलब्ध खनिज तत्वों के रूप में कार्य करें और मिट्टी की उर्वरता बढ़े।

  • तत्कालिक उपाय

  • लाल या पीली कांच की बोतल में सूर्य तप्त गौमूत्र 6 लीटर तैयार करें और इसे सिंचाई जल के साथ फसलों की जड़ों में डालें; इसके साथ ही 10 ml प्रति लीटर पानी की दर से फसलों पर स्प्रे करें।

  • 20% ऊर्जा जल और RAH FPO के खनिज भस्म को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर स्प्रे करें, ताकि पौधों को खनिज और ऊर्जा की आपूर्ति हो सके।

  • जल तत्व पूर्ति

    जल तत्व की सूक्ष्म इकाई नीर कहलाती है,जो सबकी प्यास बुझाती दे,सबको जीवन देती है। ऊर्जा को बांधने का काम जल तत्व ही करता है, जल तत्व ही ऊर्जा को प्रत्येक अंगों तक पहुंचा कर उनका आहार पूर्ण करने का काम करता है, जिसे “प्रत्याहार” कहा गया है। हमने प्राकृतिक खेती में जब से जल के साथ ऊर्जा को, अणुओं को, जीवाणु को फसलों में देना शुरू किया यथा - ऊर्जा जल, अणु जल, जीवाणु जल, भूमि जल, मीठा जल, सजीव जल आदि.. तब से ही हमे पूर्ण प्रभावी परिणाम प्राप्त हुए है।

    फसल में जल तत्व की कमी के लक्षण

    1) पत्तियों की ऊपरी भाग का सूख जाना 
    2) किनारे के भाग का सिकुड़ जाना 
    3) पत्तियों का चमक कम हो जाना,पत्तियों का मुरझाना 
    4) फलों का स्वाद कम होना,फलों में रस का कम होना।

    फसल में जल तत्व के कमी का समाधान

    स्थाई उपाय 

  • हर अमावस्या और पूर्णिमा: सिंचाई स्रोत में भूमि जल (अग्निहोत्र भस्म, फिटकरी, गौमूत्र) डालें।

  • हर एकादशी: मीठा जल (दध और जैव रसायन) डालें।

  • जमीन में सफेद मिट्टी (जिप्सम) डालें।

  • तिल की हरी खाद और कम्पोस्ट खाद जमीन में गढ़ाएं।

  • प्रति एकड़ 250 ग्राम भूमिराजा बुआई पूर्व जमीन पर डालें।

  • TCBT अन्न द्रव्य रसायन बनाकर भूमि में डालें।

  • तत्कालिक उपाय

    • हर सिंचाई से पूर्व जमीन पर माथा टिकाएँ।

    • माता गंगा से प्रार्थना करें: "हे गंगा माता, यह जल मेरे फसलों के पोषण के लिए है, कृपया आप अपनी शक्ति प्रदान करें।"

    • ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करें: "हे ईश्वर, इस कार्य में मेरी सहायता करें।"

    TCBT ऊर्जा विज्ञान में ऊर्जा चक्र बदलने के दो सफल सूत्र ह

    प्रार्थना

    प्रार्थना करने से ऊर्जा और पानी में चमत्कारिक परिर्वतन होता है, मिट्टी तुरंत पॉजिटिव होती है। अग्निहोत्र भस्म से मिट्टी स्थाई तौर पर परमानेंट पॉजिट हो जाती है। इसके प्रयोग हमने हजारों किसानों के खेतों में जाकर प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाया है, हजारों किसान इसका लाभ भी ले रहे है। 

    भूमि में माथा टिकाकर निम्न तरह से प्रार्थना करनी है “हे धरती माता यह भूमि मेरे फसलों के पोषण के लिए है यह फसले मेरे परिवार, देश, समाज और प्रकृति के अन्य जीवों के पोषण के लिये है, कृपया आप इन फसलों को अपनी शक्ति प्रदान करें, हे ईश्वर इस कार्य में मेरी सहायता करें।”। 

    इसी तरह जल से निम्नवत प्रार्थना करनी है.” हे गंगा माता यह जल मेरे फसलों के पोषण के लिये हैं कृपया आप अपनी शक्ति प्रदान करें, हे ईश्वर इस कार्य में मेरी मदद करें।” इसी तरह बीज से भी प्रार्थना करें - “हे बीज मैं आपको मेरे खेत में बुआई करने जा रहा हूँ, मैं पूरे प्राण प्राण से आपका संरक्षण संर्वधन करूं गा कृपया आप अपनी अंकु रण शक्ति जाग्रत करें, हें चंद्रदेव, हें ईश्वर इस कार्य में मेरी मदद करें।

    प्रकृति को बनाने वाली सप्त ऊर्जाओं का प्रस्फुटन अग्निहोत्र से होता है।
    ये सात ऊर्जाएँ प्रकृति के तीन तत्वों और पंचमहाभूतों का सृजन करती हैं।
    यह पंचमहाभूतों को शुद्ध और शक्तिशाली बनाती हैं। 
    TCBT में अग्निहोत्र भस्म से ऊर्जा जल बनाकर हजारों किसान इसका लाभ उठा चुके हैं।

    अग्निहोत्र क्या ह

    ठीक सूर्योदय- सूर्यास्त के समय गाय के गोबर के कण्डों से जले हुए लाल अलाव में दो चुटकी चावल और घी से मिश्रित दाे आहुति देने की प्रक्रिया का नाम अग्निहोत्र है। आहुति एक निश्चित आकार के मिट्टी या तांबे के पात्र में देशी गाय के गोबर के बने कण्डों की अग्नि में निश्चित मंत्रों के उच्चारण के साथ आहुति दिया जाता है।

    सबसे पहले किसान भाई TCBT APP या RAH FPO मोबाइल एप डाउनलोड करके ऑनलाइन अग्निहोत्र किट ऑर्डर करें, जिसमें कंड़े, घी, चावल, कपूर, माचिस, पुस्तकें और अग्निहोत्र पात्र शामिल होंगे। पात्र में दो समय के लिए कंड़े होंगे, और आगे लगातार अग्निहोत्र करने के लिए अतिरिक्त कंड़ों का ऑर्डर करें या घर पर भारतीय स्वस्थ गाय के गोबर के कंड़े बनाना शुरू करें। अग्निहोत्र का निश्चित समय सुनिश्चित करने के लिए माधव आश्रम अग्निहोत्र एप डाउनलोड करें और अपने खेत या घर का लोकेशन सेट करें। एप की सेटिंग में जाकर स्क्रीन डिस्प्ले का काउंटडाउन ऑन करें, और सूर्योदय व सूर्यास्त के समय से 15 मिनट पहले कंड़ों को आयताकार तोड़कर पात्र में जमा करें।

    अब घी की बाती, कपूर या गुड़ के टुकड़े को जलाकर अग्निहोत्र पात्र की पेंदी में डालें और ऊपर कंड़े का एक टुकड़ा रखकर ढक दें ताकि लाल अलाव बनने तक कंड़ा धीरे-धीरे जलता रहे। अग्निहोत्र शुरू होने से 3 मिनट पहले, बाएं हाथ की हथेली में दो चुटकी चावल और एक बूंद घी लेकर मिलाएं और इसे दो भागों में बाँट लें। फिर ऊपर के कंड़े का ढक्कन हटा कर आचमनी से अग्निहोत्र का मुख चौड़ा करें। जैसे ही अग्निहोत्र का समय आए, सूर्योदय में सूर्योदय का मंत्र और सूर्यास्त में सूर्यास्त का मंत्र बोलते हुए ये दोनों आहुति पात्र में डालें।

    आहुति देने के बाद कमर सीधी रखते हुए अग्नि पर ध्यान केंद्रित करें और जब तक आहुति जल रही है, शांत चित्त बैठें रहें। अग्निहोत्र पात्र को अगले 12 घंटे तक यथावत वहीं रहने दें और इसे हिलाएँ नहीं। अगले अग्निहोत्र से पहले प्राप्त भस्म को किसी काँच या मटके के पात्र में सुरक्षित रख लें। इस भस्म से ऊर्जा जल बनाकर स्वयं सुबह और शाम एक-एक गिलास पिएं और 200 लीटर ऊर्जा जल को खेत की भूमि में सिंचाई जल के साथ डालें। ऊर्जा जल बनाने की प्रक्रिया निम्नानुसार है।